अन्न ही प्राण है. अन्न ही उत्पादन है. अन्न उत्पादन के अलावा बाकी क्रियाएं दोहन, शोधन और प्रष्करण है ।
अन्न खेती के माध्यम से प्राप्त किया जाता है । खेती के कई प्रारुप और स्तर है और उसमे सर्वोत्तम नानक खेती है ।
केवल भूमि पर हल चला कर अन्न उपजाना भर खेती नही है । यह तो कुछ लोग करते ही है।
पर खेती मन तन और अयन की करनी चाहिए ।
तन मन और अयन की अंदुरनी खेती है ।
तन की खेती खानपान (आहार विहार) के नियम पालन करने से होती है । ये सहज नियम पहले सर्वसुलभ था। अब आरोग्य के लिये भोजन तो सुलभ है पर उससे ज्यादा भोजन वह उपलब्ध है जो तन के लिये हानिकारक है । ऋतु काल के विपरीत भोजन को दिनचर्या बना कर और सीमित स्वाद की सीमाओं मे बंध कर न हम केवल स्वाद बल्कि स्वास्थ्य से भी वंचित खुद को कर देते है ।
तन को स्वास्थ्य रखने के प्रारुप को तन की खेती कहते है क्यों की एक स्वास्थ्य तन से ही सुखों का भोग किया जा सकता है ।
तन और मन एक दुसरे से गूंथे है । एक के बीमार होने पर दुसरा भी बीमार हो जाता है ।
मन की खेती अलग विषय वस्तु है । आज तन तो स्वास्थ्य मिल जाता है मन का स्वास्थ्य होना ज्यादा मुश्किल है । जटिल समाज में आदमी अकेलेपन का शिकार है । अकेला आदमी किसी पर विश्वास तो नही ही करता है किसी विश्वास के योग्य भी नही होता है । समाजिक प्राणी होने के नाते उसे समाज की जरुरत है, पर वह जिस समाज में रहता है अब उसके आधार सरक रहे है, ऐसे में आदमी को भिन्न भिन्न प्रकार की चिंता घेर लेती है । चिंता से चिंतन की तरफ जाना मन की खेती है । कुविचार से सुविचार की तरफ जाना ही नानक खेती है ।
अयन यानी ओरा अयन तन और मन से निकलने वाली प्रकाश है जो हर जीवित सें निकलता है । जो जितना तन मन से स्वास्थ्य होगा उसका अयन उतना शक्तिशाली होगा । किसी के प्रति आकर्षित और विकर्षित होने में उसके अयन का प्रभाव होता है । संक्षेप मे स्वास्थ्य तन और मन में अखंडित अयन होता है और अयन से व्यक्तित्व प्रभावशाली होता है ।
नानक खेती अपनी कार्यशालायों मे धरती तन मन और अयन का उपचार और संवर्धन का तरीका बताती है ।
आइये! अपने मन - तन - अयन, परिवार - समाज, का उपचार करें और धरती को बेहतर बनायें ।